मैं ने लौह-ओ-क़लम की दुनिया को
जश्नत-ए-दार-ओ-सलीब समझा है
ऐ तनफ़्फ़ुस के जाँचने वाले
तुझ को कितना क़रीब समझा है
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Rahat Indori
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1815) Peoples Rate This
है दुआ याद मगर हर्फ़-ए-दुआ याद नहीं
हर माह लुट रही है ग़रीबों की आबरू
हर मरहला-ए-शौक़ से लहरा के गुज़र जा
एक नग़्मा इक तारा एक ग़ुंचा एक जाम
मुस्कुराओ बहार के दिन हैं
जब जाम दिया था साक़ी ने जब दौर चला था महफ़िल में
हूरों की तलब और मय ओ साग़र से है नफ़रत
ज़िंदगी जब्र-ए-मुसलसल की तरह काटी है
जिन से ज़िंदा हो यक़ीन ओ आगही की आबरू
मौत कहते हैं जिस को ऐ 'साग़र'
ग़म के मुजरिम ख़ुशी के मुजरिम हैं
एक बहकी हुई नज़र तेरी