जाम-ए-इशरत का एक घूँट नहीं
तल्ख़ी-ए-आरज़ू की मीना है
ज़िंदगी हादसों की दुनिया में
राह भोली हुई हसीना है
Ahmad Faraz
Gulzar
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Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Habib Jalib
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Wasi Shah
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कल जिन्हें छू नहीं सकती थी फ़रिश्तों की नज़र
तुम गए रौनक़-ए-बहार गई
तारों से मेरा जाम भरो मैं नशे में हूँ
ख़ता-वार-ए-मुरव्वत हो न मरहून-ए-करम हो जा
जब जाम दिया था साक़ी ने जब दौर चला था महफ़िल में
कोई ताज़ा अलम न दिखलाए
काँटे तो ख़ैर काँटे हैं इस का गिला ही क्या
मुस्कुराओ बहार के दिन हैं
जिन से अफ़्साना-ए-हस्ती में तसलसुल था कभी
जो चमन की हयात को डस ले
भूली हुई सदा हूँ मुझे याद कीजिए
मेरे तसव्वुरात हैं तहरीरें इश्क़ की