चश्म को ए'तिबार की ज़हमत
दिल को सब्र-ओ-शकेब देता है
आइने में न अक्स-ए-हस्ती देख
आइना भी फ़रेब देता है
Parveen Shakir
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इस दर्जा इश्क़ मौजिब-ए-रुस्वाई बन गया
ऐ हुस्न-ए-लाला-फ़ाम! ज़रा आँख तो मिला
ऐ दिल-ए-बे-क़रार चुप हो जा
ज़ुल्फ़-ए-बरहम की जब से शनासा हुई
ला इक ख़ुम-ए-शराब कि मौसम ख़राब है
चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अंधेरा है
अब अपनी हक़ीक़त भी 'साग़र' बे-रब्त कहानी लगती है
ये किनारों से खेलने वाले
साक़ी की इक निगाह के अफ़्साने बन गए
बात फूलों की सुना करते थे
मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया
पूछा किसी ने हाल किसी का तो रो दिए