ऐ कि तख़्लीक़-ए-बहर-ओ-बर के ख़ुदा
मुझ पे कितना करम किया तू ने
मेरी कुटिया के दीप की ख़ातिर
आँधियों को जनम दिया तू ने
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ज़िंदगी जब्र-ए-मुसलसल की तरह काटी है
वहशत-ए-दिल ने काँच के टुकड़े
अब न आएँगे रूठने वाले
तक़दीर के चेहरे की शिकन देख रहा हूँ
जाम टकराओ! वक़्त नाज़ुक है
क़ाफ़िले मंज़िल-ए-महताब की जानिब हैं रवाँ
कलियों की महक होता तारों की ज़िया होता
मेरे तसव्वुरात हैं तहरीरें इश्क़ की
चाँदनी शब है सितारों की रिदाएँ सी लो
एक वा'दा है किसी का जो वफ़ा होता नहीं
राहज़न आदमी रहनुमा आदमी
ऐ अदम के मुसाफ़िरो होशियार