आह! तेरे बग़ैर ये महताब
एक बे-सर की लाश हो जैसे
किसी दोज़ख़ के आतिशीं ये फल
आतिश-आमेज़ क़ाश हो जैसे
Javed Akhtar
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आज फिर बुझ गए जल जल के उमीदों के चराग़
सोने चाँदी की चमकती हुई मीज़ानों में
साक़ी की इक निगाह के अफ़्साने बन गए
ज़ख़्म-ए-दिल पर बहार देखा है
साक़िया एक जाम पीने से
तेरी नज़र का रंग बहारों ने ले लिया
फिर उमड आए हैं यादों के सुहाने बादल
जाने वाले हमारी महफ़िल से
ग़म के मुजरिम ख़ुशी के मुजरिम हैं
अब अपनी हक़ीक़त भी 'साग़र' बे-रब्त कहानी लगती है
ऐ दिल-ए-बे-क़रार चुप हो जा
तुम गए रौनक़-ए-बहार गई