ज़िंदगी जब्र-ए-मुसलसल की तरह काटी है
जाने किस जुर्म की पाई है सज़ा याद नहीं
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चाँदनी शब है सितारों की रिदाएँ सी लो
मुस्कुराओ बहार के दिन हैं
ऐ सितारों के चाहने वालो
ग़म के मुजरिम ख़ुशी के मुजरिम हैं
ख़ाक उड़ती है तेरी गलियों में
मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया
झिलमिलाते हुए अश्कों की लड़ी टूट गई
छुप के आएगा कोई हुस्न-ए-तख़य्युल की तरह
क़ाफ़िले मंज़िल-ए-महताब की जानिब हैं रवाँ
मैं ने जिन के लिए राहों में बिछाया था लहू
तिरी नज़र के इशारों से खेल सकता हूँ
जब जाम दिया था साक़ी ने जब दौर चला था महफ़िल में