ये किनारों से खेलने वाले
डूब जाएँ तो क्या तमाशा हो
Jaun Eliya
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Parveen Shakir
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अब न आएँगे रूठने वाले
हम फ़क़ीरों की सूरतों पे न जा
आह! तेरे बग़ैर ये महताब
अब अपनी हक़ीक़त भी 'साग़र' बे-रब्त कहानी लगती है
ज़िंदगी जब्र-ए-मुसलसल की तरह काटी है
ऐ सितारों के चाहने वालो
मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया
एक नग़्मा इक तारा एक ग़ुंचा एक जाम
चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अँधेरा है
चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अंधेरा है
जो चमन की हयात को डस ले
वहशत-ए-दिल ने काँच के टुकड़े