तक़दीर के चेहरे की शिकन देख रहा हूँ
आईना-ए-हालात है दुनिया तेरी क्या है
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जो चमन की हयात को डस ले
तारों से मेरा जाम भरो मैं नशे में हूँ
ऐ दिल-ए-बे-क़रार चुप हो जा
मआल-ए-नग़्मा-ओ-मातम फ़रोख़्त होता है
हर शय है पुर-मलाल बड़ी तेज़ धूप है
हर माह लुट रही है ग़रीबों की आबरू
कोई ताज़ा अलम न दिखलाए
जाम-ए-इशरत का एक घोंट नहीं
अब न आएँगे रूठने वाले
हूरों की तलब और मय ओ साग़र से है नफ़रत
जाम टकराओ! वक़्त नाज़ुक है
फिर उमड आए हैं यादों के सुहाने बादल