नग़्मों की इब्तिदा थी कभी मेरे नाम से
अश्कों की इंतिहा हूँ मुझे याद कीजिए
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Gulzar
Habib Jalib
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(758) Peoples Rate This
अब अपनी हक़ीक़त भी 'साग़र' बे-रब्त कहानी लगती है
मैं आदमी हूँ कोई फ़रिश्ता नहीं हुज़ूर
चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अंधेरा है
ऐ सितारों के चाहने वालो
जिस दौर में लुट जाए ग़रीबों कमाई
बे-क़रारी में भी अक्सर दर्द-मंदान-ए-जुनूँ
लोग कहते हैं रात बीत चुकी
ऐ हुस्न-ए-लाला-फ़ाम! ज़रा आँख तो मिला
महफ़िलें लुट गईं जज़्बात ने दम तोड़ दिया
एक नग़्मा इक तारा एक ग़ुंचा एक जाम
मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया
जब जाम दिया था साक़ी ने जब दौर चला था महफ़िल में