मुस्कुराओ बहार के दिन हैं
गुल खिलाओ बहार के दिन हैं
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तक़दीर के चेहरे की शिकन देख रहा हूँ
मता-ए-कौसर-ओ-ज़मज़म के पैमाने तिरी आँखें
काँटे तो ख़ैर काँटे हैं इस का गिला ही क्या
आओ इक सज्दा करें आलम-ए-मदहोशी में
मैं आदमी हूँ कोई फ़रिश्ता नहीं हुज़ूर
आज फिर बुझ गए जल जल के उमीदों के चराग़
हम फ़क़ीरों की सूरतों पे न जा
सोने चाँदी की चमकती हुई मीज़ानों में
तिरी नज़र के इशारों से खेल सकता हूँ
मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया
एक वा'दा है किसी का जो वफ़ा होता नहीं
तारों से मेरा जाम भरो मैं नशे में हूँ