मौत कहते हैं जिस को ऐ 'साग़र'
ज़िंदगी की कोई कड़ी होगी
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ऐ हुस्न-ए-लाला-फ़ाम! ज़रा आँख तो मिला
झूम कर गाओ मैं शराबी हैं
चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अँधेरा है
जिन से ज़िंदा हो यक़ीन ओ आगही की आबरू
मैं ने लौह-ओ-क़लम की दुनिया को
जाम-ए-इशरत का एक घोंट नहीं
वक़्त की उम्र क्या बड़ी होगी
तारों से मेरा जाम भरो मैं नशे में हूँ
सोने चाँदी की चमकती हुई मीज़ानों में
तेरी नज़र का रंग बहारों ने ले लिया
मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया