कल जिन्हें छू नहीं सकती थी फ़रिश्तों की नज़र
आज वो रौनक़-ए-बाज़ार नज़र आते हैं
Anwar Masood
Javed Akhtar
Gulzar
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Rahat Indori
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इस दर्जा इश्क़ मौजिब-ए-रुस्वाई बन गया
जो चमन की हयात को डस ले
अब अपनी हक़ीक़त भी 'साग़र' बे-रब्त कहानी लगती है
ख़ाक उड़ती है तेरी गलियों में
चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अँधेरा है
रूदाद-ए-मोहब्बत क्या कहिए कुछ याद रही कुछ भूल गए
मैं ने जिन के लिए राहों में बिछाया था लहू
अब कहाँ ऐसी तबीअत वाले
एक वा'दा है किसी का जो वफ़ा होता नहीं
भूली हुई सदा हूँ मुझे याद कीजिए
पूछा किसी ने हाल किसी का तो रो दिए
छलके हुए थे जाम परेशाँ थी ज़ुल्फ़-ए-यार