जिन से ज़िंदा हो यक़ीन ओ आगही की आबरू
इश्क़ की राहों में कुछ ऐसे गुमाँ करते चलो
Faiz Ahmad Faiz
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इस दर्जा इश्क़ मौजिब-ए-रुस्वाई बन गया
वक़्त के रंगीं गुल-दस्ते को याद आएगा ठंडा हाथ
राहज़न आदमी रहनुमा आदमी
तिरी नज़र के इशारों से खेल सकता हूँ
ग़म के मुजरिम ख़ुशी के मुजरिम हैं
दुनिया-ए-हादसात है इक दर्दनाक गीत
मआल-ए-नग़्मा-ओ-मातम फ़रोख़्त होता है
ज़िंदगी जब्र-ए-मुसलसल की तरह काटी है
चाँदनी को रसूल कहता हूँ
है दुआ याद मगर हर्फ़-ए-दुआ याद नहीं
कल जिन्हें छू नहीं सकती थी फ़रिश्तों की नज़र
मुस्कुराओ बहार के दिन हैं