जब जाम दिया था साक़ी ने जब दौर चला था महफ़िल में
इक होश की साअत क्या कहिए कुछ याद रही कुछ भूल गए
Faiz Ahmad Faiz
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चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अँधेरा है
पूछा किसी ने हाल किसी का तो रो दिए
वक़्त की उम्र क्या बड़ी होगी
मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया
एक वा'दा है किसी का जो वफ़ा होता नहीं
ये जो दीवाने से दो चार नज़र आते हैं
ग़म के मुजरिम ख़ुशी के मुजरिम हैं
मौत कहते हैं जिस को ऐ 'साग़र'
हर मरहला-ए-शौक़ से लहरा के गुज़र जा
ऐ दिल-ए-बे-क़रार चुप हो जा
वक़्त के रंगीं गुल-दस्ते को याद आएगा ठंडा हाथ
मुस्कुराओ बहार के दिन हैं