हम बनाएँगे यहाँ 'साग़र' नई तस्वीर-ए-शौक़
हम तख़य्युल के मुजद्दिद हम तसव्वुर के इमाम
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चाँदनी शब है सितारों की रिदाएँ सी लो
हर माह लुट रही है ग़रीबों की आबरू
एक नग़्मा इक तारा एक ग़ुंचा एक जाम
है एहतिसाब-ए-वक़्त की लटकी हुई सलीब
मैं ने लौह-ओ-क़लम की दुनिया को
ऐ अदम के मुसाफ़िरो होशियार
जाने वाले हमारी महफ़िल से
कल जिन्हें छू नहीं सकती थी फ़रिश्तों की नज़र
अब कहाँ ऐसी तबीअत वाले
तुम गए रौनक़-ए-बहार गई
ज़िंदगी जब्र-ए-मुसलसल की तरह काटी है
मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया