दुनिया-ए-हादसात है इक दर्दनाक गीत
दुनिया-ए-हादसात से घबरा के पी गया
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Allama Iqbal
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कोई ताज़ा अलम न दिखलाए
मौत कहते हैं जिस को ऐ 'साग़र'
आज फिर बुझ गए जल जल के उमीदों के चराग़
झूम कर गाओ मैं शराबी हैं
ऐ हुस्न-ए-लाला-फ़ाम! ज़रा आँख तो मिला
लोग कहते हैं रात बीत चुकी
कलियों की महक होता तारों की ज़िया होता
पूछा किसी ने हाल किसी का तो रो दिए
नग़्मों की इब्तिदा थी कभी मेरे नाम से
जिन से अफ़्साना-ए-हस्ती में तसलसुल था कभी
झिलमिलाते हुए अश्कों की लड़ी टूट गई
ग़म के मुजरिम ख़ुशी के मुजरिम हैं