छलके हुए थे जाम परेशाँ थी ज़ुल्फ़-ए-यार
कुछ ऐसे हादसात से घबरा के पी गया
Javed Akhtar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Rahat Indori
Gulzar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
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चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अंधेरा है
ग़म के मुजरिम ख़ुशी के मुजरिम हैं
मैं ने जिन के लिए राहों में बिछाया था लहू
वक़्त के रंगीं गुल-दस्ते को याद आएगा ठंडा हाथ
ख़ता-वार-ए-मुरव्वत हो न मरहून-ए-करम हो जा
चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अँधेरा है
क़ाफ़िले मंज़िल-ए-महताब की जानिब हैं रवाँ
वो बुलाएँ तो क्या तमाशा हो
जाने वाले हमारी महफ़िल से
तारों से मेरा जाम भरो मैं नशे में हूँ
जो चमन की हयात को डस ले
मैं ने लौह-ओ-क़लम की दुनिया को