चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अंधेरा है
ज़रा नक़ाब उठाओ बड़ा अंधेरा है
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Wasi Shah
Habib Jalib
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Gulzar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(810) Peoples Rate This
वक़्त के रंगीं गुल-दस्ते को याद आएगा ठंडा हाथ
चाँदनी को रसूल कहता हूँ
ऐ दिल-ए-बे-क़रार चुप हो जा
चश्म को ए'तिबार की ज़हमत
दुनिया-ए-हादसात है इक दर्दनाक गीत
महफ़िलें लुट गईं जज़्बात ने दम तोड़ दिया
तक़दीर के चेहरे की शिकन देख रहा हूँ
चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अँधेरा है
हर शय है पुर-मलाल बड़ी तेज़ धूप है
आज फिर बुझ गए जल जल के उमीदों के चराग़
हूरों की तलब और मय ओ साग़र से है नफ़रत
हम फ़क़ीरों की सूरतों पे न जा