अब कहाँ ऐसी तबीअत वाले
चोट खा कर जो दुआ करते थे
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झिलमिलाते हुए अश्कों की लड़ी टूट गई
मुस्कुराओ बहार के दिन हैं
ख़ाक उड़ती है तेरी गलियों में
हम बनाएँगे यहाँ 'साग़र' नई तस्वीर-ए-शौक़
है एहतिसाब-ए-वक़्त की लटकी हुई सलीब
चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अंधेरा है
एक नग़्मा इक तारा एक ग़ुंचा एक जाम
रूदाद-ए-मोहब्बत क्या कहिए कुछ याद रही कुछ भूल गए
वक़्त की उम्र क्या बड़ी होगी
है दुआ याद मगर हर्फ़-ए-दुआ याद नहीं
वो बुलाएँ तो क्या तमाशा हो