आओ इक सज्दा करें आलम-ए-मदहोशी में
लोग कहते हैं कि 'साग़र' को ख़ुदा याद नहीं
Parveen Shakir
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Gulzar
Anwar Masood
Javed Akhtar
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(964) Peoples Rate This
ये जो दीवाने से दो चार नज़र आते हैं
ऐ अदम के मुसाफ़िरो होशियार
नग़्मों की इब्तिदा थी कभी मेरे नाम से
मेरे तसव्वुरात हैं तहरीरें इश्क़ की
तिरी नज़र के इशारों से खेल सकता हूँ
जो चमन की हयात को डस ले
वो बुलाएँ तो क्या तमाशा हो
हर मरहला-ए-शौक़ से लहरा के गुज़र जा
कल जिन्हें छू नहीं सकती थी फ़रिश्तों की नज़र
साक़ी की इक निगाह के अफ़्साने बन गए
इस दर्जा इश्क़ मौजिब-ए-रुस्वाई बन गया
जिस दौर में लुट जाए ग़रीबों कमाई