वो सवाल-ए-लुत्फ़ पर पत्थर न बरसाएँ तो क्यूँ
उन को परवा-ए-शिकस्त-ए-कासा-ए-साइल नहीं
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Allama Iqbal
Anwar Masood
Wasi Shah
Rahat Indori
Parveen Shakir
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सदियों की शब-ए-ग़म को सहर हम ने बनाया
दिल की बर्बादियों का रोना क्या
सज्दे मिरी जबीं के नहीं इस क़दर हक़ीर
तेरे नग़्मों से है रग रग में तरन्नुम पैदा
रातों को तसव्वुर है उन का और चुपके चुपके रोना है
होली
दोस्तो दुर्द पिलाओ कि कड़ी रात कटे
सैलाब-ए-तबस्सुम से दरमान-ए-जराहत कर
ढूँढने को तुझे ओ मेरे न मिलने वाले
काफ़िर गेसू वालों की रात बसर यूँ होती है
नदीम-ए-दर्द-ए-मोहब्बत बड़ा सहारा है
पनघट की रानी