सैलाब-ए-तबस्सुम से दरमान-ए-जराहत कर
टुकड़े दिल-ए-बिस्मिल के आलूदा-ए-ख़ूँ कब तक
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होली
वो सवाल-ए-लुत्फ़ पर पत्थर न बरसाएँ तो क्यूँ
गुल अपने ग़ुंचे अपने गुल्सिताँ अपना बहार अपनी
नदीम-ए-दर्द-ए-मोहब्बत बड़ा सहारा है
आओ इक सज्दा करूँ आलम-ए-बद-सम्ती में
पनघट की रानी
यूँ न रह रह कर हमें तरसाइए
ख़िरामाँ ख़िरामाँ मोअत्तर मोअत्तर
दश्त में क़ैस नहीं कोह पे फ़रहाद नहीं
जो रहीन-ए-तग़य्युरात नहीं
ढूँढने को तुझे ओ मेरे न मिलने वाले