दिल की बर्बादियों का रोना क्या
ऐसे कितने ही वाक़िआ'त हुए
Jaun Eliya
Wasi Shah
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Habib Jalib
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Rahat Indori
Gulzar
Mir Taqi Mir
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होली
सावन की रुत आ पहुँची काले बादल छाएँगे
दश्त में क़ैस नहीं कोह पे फ़रहाद नहीं
तेरे नग़्मों से है रग रग में तरन्नुम पैदा
हम आँखों से भी अर्ज़-ए-तमन्ना नहीं करते
आँख तुम्हारी मस्त भी है और मस्ती का पैमाना भी
यूँ न रह रह कर हमें तरसाइए
वो सवाल-ए-लुत्फ़ पर पत्थर न बरसाएँ तो क्यूँ
यही सहबा यही साग़र यही पैमाना है
सदियों की शब-ए-ग़म को सहर हम ने बनाया
फिर रह-ए-इश्क़ वही ज़ाद-ए-सफ़र माँगे है
काफ़िर गेसू वालों की रात बसर यूँ होती है