साग़र निज़ामी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का साग़र निज़ामी
नाम | साग़र निज़ामी |
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अंग्रेज़ी नाम | Saghar Nizami |
जन्म की तारीख | 1905 |
मौत की तिथि | 1984 |
जन्म स्थान | Delhi |
यही सहबा यही साग़र यही पैमाना है
वो सवाल-ए-लुत्फ़ पर पत्थर न बरसाएँ तो क्यूँ
वो मिरी ख़ाक-नशीनी के मज़े क्या जाने
तेरे नग़्मों से है रग रग में तरन्नुम पैदा
तख़्लीक़ अँधेरों से किए हम ने उजाले
सज्दे मिरी जबीं के नहीं इस क़दर हक़ीर
सैलाब-ए-तबस्सुम से दरमान-ए-जराहत कर
नज़र करम की फ़रावानियों पे पड़ती है
ख़िरामाँ ख़िरामाँ मोअत्तर मोअत्तर
काफ़िर गेसू वालों की रात बसर यूँ होती है
हुस्न ने दस्त-ए-करम खींच लिया है क्या ख़ूब
गुल अपने ग़ुंचे अपने गुल्सिताँ अपना बहार अपनी
दिल की बर्बादियों का रोना क्या
ढूँढने को तुझे ओ मेरे न मिलने वाले
आओ इक सज्दा करूँ आलम-ए-बद-सम्ती में
आँख तुम्हारी मस्त भी है और मस्ती का पैमाना भी
पनघट की रानी
होली
यूँ न रह रह कर हमें तरसाइए
सावन की रुत आ पहुँची काले बादल छाएँगे
सदियों की शब-ए-ग़म को सहर हम ने बनाया
रातों को तसव्वुर है उन का और चुपके चुपके रोना है
फिर रह-ए-इश्क़ वही ज़ाद-ए-सफ़र माँगे है
नग़्मे हवा ने छेड़े फ़ितरत की बाँसुरी में
नदीम-ए-दर्द-ए-मोहब्बत बड़ा सहारा है
न कश्ती है न फ़िक्र-ए-ना-ख़ुदा है
जो रहीन-ए-तग़य्युरात नहीं
हम आँखों से भी अर्ज़-ए-तमन्ना नहीं करते
हैरत से तक रहा है जहान-ए-वफ़ा मुझे
गेसू को तिरे रुख़ से बहम होने न देंगे