हज़ार हम-सफ़रों में सफ़र अकेला है
हज़ार हम-सफ़रों में सफ़र अकेला है
ये इंतिशार कि इक इक बशर अकेला है
गुलू-बुरीदा सभी हैं मगर ज़ह-ए-तौक़ीर
बुलंद नोक-ए-सिनाँ पर ये सर अकेला है
न पत्तियाँ हैं न फल-फूल फिर भी छाँव तो देख
सुना था मैं ने कि ग़म का शजर अकेला है
ये भीड़ ख़ाक दिखाएगी शान-ए-बे-जिगरी
ये उस का हक़ है जो सीना-सिपर अकेला है
लिपट के रूह से कहता रहा बदन कल रात
न जाओ छोड़ के मुझ को कि घर अकेला है
मता-ए-क़ल्ब-ओ-जिगर किस को सौंप दूँ 'साग़र'
हुजूम-ए-बे-हुनरी में हुनर अकेला है
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