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हज़ार हम-सफ़रों में सफ़र अकेला है - साग़र मेहदी कविता - Darsaal

हज़ार हम-सफ़रों में सफ़र अकेला है

हज़ार हम-सफ़रों में सफ़र अकेला है

ये इंतिशार कि इक इक बशर अकेला है

गुलू-बुरीदा सभी हैं मगर ज़ह-ए-तौक़ीर

बुलंद नोक-ए-सिनाँ पर ये सर अकेला है

न पत्तियाँ हैं न फल-फूल फिर भी छाँव तो देख

सुना था मैं ने कि ग़म का शजर अकेला है

ये भीड़ ख़ाक दिखाएगी शान-ए-बे-जिगरी

ये उस का हक़ है जो सीना-सिपर अकेला है

लिपट के रूह से कहता रहा बदन कल रात

न जाओ छोड़ के मुझ को कि घर अकेला है

मता-ए-क़ल्ब-ओ-जिगर किस को सौंप दूँ 'साग़र'

हुजूम-ए-बे-हुनरी में हुनर अकेला है

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In Hindi By Famous Poet Saghar Mehdi. is written by Saghar Mehdi. Complete Poem in Hindi by Saghar Mehdi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.