रफ़्ता रफ़्ता हर पुलीस वाले को शाएर कर दिया
महफ़िल-ए-शेर-ओ-सुख़न में भेज के सरकार ने
एक क़ैदी सुब्ह को फाँसी लगा कर मर गया
रात भर ग़ज़लें सुनाईं उस को थानेदार ने
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इक्कीसवीं सदी का आदमी
'साग़र' किसे बताइए ये वोल्टेज का हाल
अब जश्न-ए-अश्क ऐ शब-ए-हिज्राँ करेंगे हम
इक शब हमारे बज़्म में जूते जो खो गए
ज़रूरत-ए-रिश्ता
ख़ुद तो कभी न आएगी होंटों पे अब हँसी
उस्ताद मर गए
क्यूँ हमारे ख़ून को पानी किए देते हैं आप
ये बोला दिल्ली के कुत्ते से गाँव का कुत्ता
देख के बोला हाथ मुनज्जम
रह-ए-हयात में बस वो क़दम बढ़ा के चले
इंजीनियर करेंगे अगर डॉक्टर का काम