महँगाई के ज़माने में बच्चों की रेल-पेल
ऐसा न हो कमर तिरी महँगाई तोड़ दे
अच्छा है दिल के पास रहे बेगम-ए-हयात
''लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे
Wasi Shah
Gulzar
Rahat Indori
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1534) Peoples Rate This
उस्ताद मर गए
'साग़र' किसे बताइए ये वोल्टेज का हाल
बदला न ब'अद-ए-मौत भी काँटों-भरा नसीब
इक्कीसवीं सदी का आदमी
गले पड़ा मेहमान
ज़रूरत-ए-रिश्ता
जान जाने को है और रक़्स में परवाना है
'साग़र' बहुत गुज़ारी गुनाहों में ज़िंदगी
ख़ुद तो कभी न आएगी होंटों पे अब हँसी
मह-जबीनो पास आओ और ये बतलाओ हमें
मग़्ज़-ए-शाएर
रह-ए-हयात में बस वो क़दम बढ़ा के चले