मह-जबीनो पास आओ और ये बतलाओ हमें
इंडिया है मुल्क अपना या कि इंग्लिस्तान है
किस से कहिए झाँकिए अपने गरेबाँ में ज़रा
जिस को कहते हैं गरेबाँ वो तो रोशन-दान है
Allama Iqbal
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Gulzar
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उस वक़्त मुझ को दावत-ए-जाम-ओ-सुबू मिली
'साग़र' बहुत गुज़ारी गुनाहों में ज़िंदगी
बदला न ब'अद-ए-मौत भी काँटों-भरा नसीब
तौबा तौबा से नदामत की घड़ी आई है
दीवानगी-ए-इश्क़ पे इल्ज़ाम कुछ भी हो
सिर्फ़ कहती रहोगी ऐ बेगम
अब जश्न-ए-अश्क ऐ शब-ए-हिज्राँ करेंगे हम
क्यूँ हमारे ख़ून को पानी किए देते हैं आप
पस-ए-रौशनी
टेम्परेरी जॉब
मैं ने पूछा ये एक शाएर से
नफ़रतों की जंग में देखो तो क्या क्या खो गया