बदला न ब'अद-ए-मौत भी काँटों-भरा नसीब
आया न जोश रहमत-ए-पर्वरदिगार में
हर हूर उन की हो गई मैं देखता रहा
पहले से शैख़ दफ़्न थे मेरे मज़ार में
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Gulzar
Allama Iqbal
Rahat Indori
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1063) Peoples Rate This
नफ़रतों की जंग में देखो तो क्या क्या खो गया
गिर्या-ए-शैताँ
कहा बेटे ने इक तस्वीर अपनी माँ को दिखला कर
क्यूँ दिल तिरे ख़याल का हामिल नहीं रहा
रोटी कपड़ा और मकान
पस-ए-रौशनी
अदब में आ गए ख़म ठोंक शाएर
बैठे हैं ऐसे ज़ुल्फ़ में कलियाँ सँवार के
गधों का मुशाएरे
दिल्ली की बस
दीवानगी-ए-इश्क़ पे इल्ज़ाम कुछ भी हो
आशिक़ जो चाहते थे वही काम हो गया