अब इश्क़ नहीं मुश्किल बस इतना समझ लीजे
कब आग का दरिया है कब तैर के जाना है
मायूस न हूँ आशिक़ मिल जाएगी माशूक़ा
बस इतनी सी ज़हमत है मोबाइल उठाना है
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'साग़र' किसे बताइए ये वोल्टेज का हाल
पस-ए-रौशनी
तौबा तौबा से नदामत की घड़ी आई है
कहूँ तो क्या मैं कहूँ प्यारी प्यारी आँखों को
उस वक़्त मुझ को दावत-ए-जाम-ओ-सुबू मिली
ये हादसा है बता दे कोई ज़माने को
वो भी क्या दिन थे कि जब इश्क़ लड़ा लेते थे
बोला दुकान-दार कि क्या चाहिए तुम्हें
इक्कीसवीं सदी का आदमी
कौन कहता है बुलंदी पे नहीं हूँ 'सागर'
ये बोला दिल्ली के कुत्ते से गाँव का कुत्ता
क्यूँ हमारे ख़ून को पानी किए देते हैं आप