'साग़र' बहुत गुज़ारी गुनाहों में ज़िंदगी
अब कुछ न कुछ नजात का सामाँ करेंगे हम
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कहा बेटे ने इक तस्वीर अपनी माँ को दिखला कर
उल्टी गंगा
पस-ए-रौशनी
इंजीनियर करेंगे अगर डॉक्टर का काम
रह-ए-हयात में बस वो क़दम बढ़ा के चले
रोटी कपड़ा और मकान
कौन कहता है बुलंदी पे नहीं हूँ 'सागर'
बारिशें नहीं होतीं
'साग़र' किसे बताइए ये वोल्टेज का हाल
दीवानगी-ए-इश्क़ पे इल्ज़ाम कुछ भी हो
सिर्फ़ कहती रहोगी ऐ बेगम
उठ चले वो तो इस में हैरत क्या