नफ़रतों की जंग में देखो तो क्या क्या खो गया
सब्ज़ियाँ हिन्दू हुईं बकरा मुसलमाँ हो गया
Anwar Masood
Habib Jalib
Rahat Indori
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Allama Iqbal
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Sharabi Poetry
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इंजीनियर करेंगे अगर डॉक्टर का काम
अब इश्क़ नहीं मुश्किल बस इतना समझ लीजे
अलाउद्दीन का तरबूज़
महँगाई के ज़माने में बच्चों की रेल-पेल
मग़्ज़-ए-शाएर
गिर्या-ए-शैताँ
टेम्परेरी जॉब
क्यूँ दिल तिरे ख़याल का हामिल नहीं रहा
हुस्न ही हुस्न का हर शहर में जल्वा होता
देख के बोला हाथ मुनज्जम
उस वक़्त मुझ को दावत-ए-जाम-ओ-सुबू मिली
अदब में आ गए ख़म ठोंक शाएर