जान जाने को है और रक़्स में परवाना है
कितना रंगीन मोहब्बत तिरा अफ़्साना है
Parveen Shakir
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वो भी क्या दिन थे कि जब इश्क़ लड़ा लेते थे
उल्टी गंगा
ख़ुद तो कभी न आएगी होंटों पे अब हँसी
बैठे हैं ऐसे ज़ुल्फ़ में कलियाँ सँवार के
क्यूँ दिल तिरे ख़याल का हामिल नहीं रहा
उस्ताद मर गए
बदला न ब'अद-ए-मौत भी काँटों-भरा नसीब
रोटी कपड़ा और मकान
गधों का मुशाएरे
तजरबा है हमें मोहब्बत का
ये बोला दिल्ली के कुत्ते से गाँव का कुत्ता