इक अजब चीज़ है शराफ़त भी
इस में शर भी है और आफ़त भी
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आशिक़ जो चाहते थे वही काम हो गया
उस्ताद मर गए
गिर्या-ए-शैताँ
मह-जबीनो पास आओ और ये बतलाओ हमें
रह-ए-हयात में बस वो क़दम बढ़ा के चले
बारिशें नहीं होतीं
गले पड़ा मेहमान
'साग़र' किसे बताइए ये वोल्टेज का हाल
दिल्ली की बस
हुस्न ही हुस्न का हर शहर में जल्वा होता
इक्कीसवीं सदी का आदमी
रोटी कपड़ा और मकान