रोटी कपड़ा और मकान

दिल जल रहे हैं दोस्तो ग़म के अलाव में

बच्चे भी मुब्तला हैं दिमाग़ी तनाव में

पानी की तरह बहती है दौलत चुनाव में

यक-जेहती का तो नाम नहीं रख-रखाव में

इक आदमी के वास्ते पतलून, शर्ट, कोट

इक आदमी के वास्ते मुमकिन नहीं लँगोट

इक घर में इतनी रोटियाँ खाए नहीं बनें

इक घर का है ये हाल कि सत्तू नहीं सनें

इक घर में इतनी रौशनी आँखें नहीं खुलें

इक घर में घासलेट के दीपक नहीं जलें

कुत्ते किसी के सैर को मोटर पे जाए हैं

क़िस्मत के दर पे बैठ के कुछ दुम हिलाए हैं

ये कौन सोचता है बराबर है आदमी

दौलत है जिस के पास वो बेहतर है आदमी

वो आदमी नहीं जो फटीचर है आदमी

राहें तवील और खुले सर है आदमी

उसिया रहा है वो जो ग़रीबी की ओस में

पकवान पक रहे हैं उसी के पड़ोस में

सेहन-ए-चमन में कुछ पस-ए-दीवार हैं खड़े

यानी अवाम जान से बेज़ार हैं खड़े

दफ़्तर में रोज़गार के बे-कार हैं खड़े

लाइन में अस्पताल की बीमार हैं खड़े

रोटी अगर न पाई तो पत्थर उठाएँगे

भूके कभी न भूक में मल्हार गाएँगे

आलम ये दफ़्तरों का है यारान-ए-तेज़-गाम

फैला हर एक गाम है रिश्वत का एक दाम

अफ़सर भी बे-नकेल हैं स्टाफ़ बे-लगाम

जनता का है ये हाल कि करती है राम राम

मौसम को देख-भाल के फ़ाइल बढ़ाए हैं

दफ़्तर में लड़कियाँ भी तो सुइटर बनाए हैं

रौशन करो चराग़ वो दौर-ए-सियाह में

खाए न कोई ठोकरें कोई रोटी की चाह में

ग़ुर्बत अड़ी हुई है तरक़्क़ी की राह में

यकसाँ सभी हों लोग तुम्हारी निगाह में

तरतीब दो चमन बढ़ी शाख़ों को छाँट दो

दौलत को आदमी पे बराबर से बाँट दो

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In Hindi By Famous Poet Saghar Khayyami. is written by Saghar Khayyami. Complete Poem in Hindi by Saghar Khayyami. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.