नवादिरात की दूकान
बोला दूकान-दार कि सरकार देखिए
मुग़लोे की आन-बान के आसार देखिए
'अकबर' की तेग़ और सिपर है 'सलीम' की
हर चीज़ दस्तियाब है अहद-ए-क़दीम की
'ग़ालिब' का जाम 'मीर' की टोपी का बाँकपन
'मोमिन' का लोटा हज़रत-ए-'सौदा' का पैरहन
एड़ी गुलाब की है तो पंजा कँवल का है
जूता मिरी दूकान पे हज़रत-महल का है
चुटकी में मेरी दाँत किसी पोपले का है
नेकर भी दस्तियाब यहाँ डोपले का है
टोपी जो मेरे सर पे है बाँके पिया की है
चोली मिरी दूकान पे विक्टोरिया की है
लिखा हुआ है मर्सिया 'हाली' के हाथ का
कहता है माजरा जो जुदाई की रात का
अस्ना-ए-गुफ़्तुगू में जो इक लंगड़ा आ गया
बे-साख़्ता ज़बान पे ये जुमला आ गया
बे-ख़ौफ़ बे-हिरास सर-ए-आम तो बता
मैं ने कहा कि लंगड़े के कुछ दाम तो बता
बोला मिरी दूकाँ पे न बकवास कीजिए
अहल-ए-हुनर का आप ज़रा पास कीजिए
अहल-ए-नज़र लगाएँगे लंगड़े के दाम क्या
बोला मिरी दूकान पे लूले का काम क्या
गाहक से मैं ये बोला रक़म खेंच लीजियो
'तैमूर-लंग' कह के इसे बेच लीजियो
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