गले पड़ा मेहमान
इक रोज़ घर जमे हुए मेहमान से कहा
रुस्वा हुआ कि आप की ख़िदमत न कर सका
कहने लगे कि ऐसा नहीं है जनाब-ए-मन
भाभी मुझे खिलाती रहीं मुर्ग़ और मटन
अफ़राद-ए-ख़ाना आप के सब बे-गज़ंद हैं
बेटे भी तीनों आप के मुझ को पसंद हैं
मैं ने कहा कि फिर भी मिरे दिल को है यक़ीं
ख़ातिर न कोई कर सका मैं आप के तईं
ज़हमत हुई है अब न कभी आप आएँगे
बोले ज़रूर आऊँगा जब भी बुलाएँगे
मैं ने कहा कि मुर्ग़ मटन यूँ ही खाओगे
जब जाओगे नहीं तो भला कैसे आओगे
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