दुम
'साग़र' कहाँ से आ गई दिल में दुमों की बात
दुम के बग़ैर आदमी लगता है वाहियात
मिलते हैं अहल-ए-फ़न को यहीं से मुहर्रिकात
होती थी दुम सुबूत में इस के मुहावरात
उस्ताद कह रहे थे छुरा दिल पे चल गया
दुम पर हमारी पाँव वो रख कर निकल गया
होती थी इक ज़माने में हर आदमी के दुम
बे-इम्तियाज़-ए-मज़हब-ओ-मिल्लत सभी के दुम
फूले नहीं समाती थी मारे ख़ुशी के दुम
गर्दन में डाले फिरते थे आशिक़ किसी के दुम
जाता था जब सफ़र पे कोई दुम हिलाते थे
इक दूसरे से हाथ नहीं दुम मिलाते थे
होता जो इन दिनों कहीं दुम-दार आदमी
करता दुमों से इश्क़ का इज़हार आदमी
रखता बरा-ए-हिफ़्ज़ न हथियार आदमी
दुम को चलाता जान के तलवार आदमी
क्यूँ जूतियाँ बरसतीं किसी बद-ख़िसाल पर
माशूक़ दुम को मारते आशिक़ के गाल पर
चढ़ता है ज़ेहन-ए-इश्क़ पे जब इश्क़ का बुख़ार
दिल से ज़ियादा दुम नज़र आती है बे-क़रार
मोटी दुमों से होता है अक्सर सभी को प्यार
इक दुम के पीछे होते हैं दुम-छल्ले बे-शुमार
क्या थी ख़बर ये रिश्ता-ए-जाँ टूट जाएगा
हाथों से मेरी दुम का सिरा छूट जाएगा
शोला बरा-ए-इश्क़ भड़कता नहीं कोई
कम-ज़र्फ़ मय-कदे में छलकता नहीं कोई
टेढ़ी दुमों के साथ अटकता नहीं कोई
उलझी दुमों के पास फटकता नहीं कोई
इक दुम बहुत है सारे शयातीन के लिए
कितनी ज़रूरी शय है ख़्वातीन के लिए
हम भी उन्हीं दमों के हमेशा से फ़ैन हैं
इज़्ज़त हैं ख़ानदाँ की जो महफ़िल की ज़ैन हैं
ठंडक हैं चश्म-ए-तर की कलेजे का चैन हैं
'साग़र' शब-ए-फ़िराक़ ये आशिक़ के बैन हैं
रखिए ख़ुदा के वास्ते दुम को ग़िलाफ़ में
कल शब टहल रही थी हमारे लिहाफ़ में
सौ फ़ाएदे दुमों के हैं क्या क्या गिनाइए
तारे फ़लक से तोड़ के धरती पे लाइए
फुन्ने से दुम के चेहरे पे पाउडर लगाइए
चमचा न हो तो चाय भी दुम से चलाइए
वो ही मक़ाम-ए-'ग़ालिब'-ओ-'इक़बाल' पाएँगे
मोटी दुमों के सामने जो दुम हिलाएँगे
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