तौबा तौबा से नदामत की घड़ी आई है
तौबा तौबा से नदामत की घड़ी आई है
मय-कदे पर बड़ी घनघोर घटा छाई है
रंग कुछ इतना मिरी वहशत-ए-दिल लाई है
मजमा-ए-आम है और आप का सौदाई है
अश्क पीता हूँ तो लो देते हैं छाले दिल के
आह करता हूँ तो फिर इश्क़ की रुस्वाई है
लौ न देने लगें जलते हुए गुल के रुख़्सार
आरिज़-ए-गुल पे जो शबनम ने जगह पाई है
मैं तसव्वुर की हदों से भी गुज़र जाऊँगा
मुझ से मिलने में अगर आप की रुस्वाई है
जब भी उलझा है सुकूत-ए-शब-ए-ग़म से मिरा दिल
तेरी यादों ने तबीअत मिरी बहलाई है
शैख़-साहिब की नसीहत भरी बातों के लिए
कितना रंगीन जवाब आप की अंगड़ाई है
जब कभी तर्क-ए-मय-ओ-जाम का आया है ख़याल
मौज से फिर तिरी तस्वीर उभर आई है
अपनी तक़दीर पे बे-साख़्ता आई है हँसी
जब भी कश्ती कोई साहिल पे नज़र आई है
कहकशाँ डाले है चेहरे पे रूपहला आँचल
चाँदनी पाँव तले बिछने चली आई है
कौन कहता है बुलंदी पे नहीं हूँ 'सागर'
मेरी मेराज-ए-मोहब्बत मिरी रुस्वाई है
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