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तौबा तौबा से नदामत की घड़ी आई है - साग़र ख़य्यामी कविता - Darsaal

तौबा तौबा से नदामत की घड़ी आई है

तौबा तौबा से नदामत की घड़ी आई है

मय-कदे पर बड़ी घनघोर घटा छाई है

रंग कुछ इतना मिरी वहशत-ए-दिल लाई है

मजमा-ए-आम है और आप का सौदाई है

अश्क पीता हूँ तो लो देते हैं छाले दिल के

आह करता हूँ तो फिर इश्क़ की रुस्वाई है

लौ न देने लगें जलते हुए गुल के रुख़्सार

आरिज़-ए-गुल पे जो शबनम ने जगह पाई है

मैं तसव्वुर की हदों से भी गुज़र जाऊँगा

मुझ से मिलने में अगर आप की रुस्वाई है

जब भी उलझा है सुकूत-ए-शब-ए-ग़म से मिरा दिल

तेरी यादों ने तबीअत मिरी बहलाई है

शैख़-साहिब की नसीहत भरी बातों के लिए

कितना रंगीन जवाब आप की अंगड़ाई है

जब कभी तर्क-ए-मय-ओ-जाम का आया है ख़याल

मौज से फिर तिरी तस्वीर उभर आई है

अपनी तक़दीर पे बे-साख़्ता आई है हँसी

जब भी कश्ती कोई साहिल पे नज़र आई है

कहकशाँ डाले है चेहरे पे रूपहला आँचल

चाँदनी पाँव तले बिछने चली आई है

कौन कहता है बुलंदी पे नहीं हूँ 'सागर'

मेरी मेराज-ए-मोहब्बत मिरी रुस्वाई है

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In Hindi By Famous Poet Saghar Khayyami. is written by Saghar Khayyami. Complete Poem in Hindi by Saghar Khayyami. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.