अब जश्न-ए-अश्क ऐ शब-ए-हिज्राँ करेंगे हम
अब जश्न-ए-अश्क ऐ शब-ए-हिज्राँ करेंगे हम
अपनी तबाहियों पे चराग़ाँ करेंगे हम
ख़ुद तो कभी न आएगी होंटों पे अब हँसी
हाँ दूसरों के हँसने का सामाँ करेंगे हम
क्या थी ख़बर कि हद से गुज़र जाएगा जुनूँ
हाथों से अपने चाक गरेबाँ करेंगे हम
फिर जामा-ए-जुनूँ की करेंगे रफ़ूगरी
फिर इंतिज़ार-ए-फ़स्ल-ए-बहाराँ करेंगे हम
'साग़र' बहुत गुज़ारी गुनाहों में ज़िंदगी
अब कुछ न कुछ नजात का सामाँ करेंगे हम
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