कल हम आईने में रुख़ की झुर्रियाँ देखा किए
कारवान-ए-उम्र-ए-रफ़्ता का निशाँ देखा किए
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Habib Jalib
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Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Wasi Shah
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Mohsin Naqvi
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तड़प के रात बसर की जो इक मुहिम सर की
दें भी जवाब-ए-ख़त कि न दें क्या ख़बर मुझे
पैग़ाम ज़िंदगी ने दिया मौत का मुझे
बनावट हो तो ऐसी हो कि जिस से सादगी टपके
तालिब-ए-दीद पे आँच आए ये मंज़ूर नहीं
देखे बग़ैर हाल ये है इज़्तिराब का
जाना जाना जल्दी क्या है इन बातों को जाने दो
मिरी नाश के सिरहाने वो खड़े ये कह रहे हैं
ख़त्म हो जाते जो हुस्न ओ इश्क़ के नाज़ ओ अदा
वो आलम है कि मुँह फेरे हुए आलम निकलता है
जनाज़ा रोक कर मेरा वो इस अंदाज़ से बोले