जनाज़ा रोक कर मेरा वो इस अंदाज़ से बोले
गली हम ने कही थी तुम तो दुनिया छोड़े जाते हो
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बनावट हो तो ऐसी हो कि जिस से सादगी टपके
उर्दू-ए-मुअ'ल्ला
तालिब-ए-दीद पे आँच आए ये मंज़ूर नहीं
ग़ज़ल उस ने छेड़ी मुझे साज़ देना
वो आलम है कि मुँह फेरे हुए आलम निकलता है
देखे बग़ैर हाल ये है इज़्तिराब का
ख़त्म हो जाते जो हुस्न ओ इश्क़ के नाज़ ओ अदा
जाना जाना जल्दी क्या है इन बातों को जाने दो
तड़प के रात बसर की जो इक मुहिम सर की
कल हम आईने में रुख़ की झुर्रियाँ देखा किए
मिरी नाश के सिरहाने वो खड़े ये कह रहे हैं