देखे बग़ैर हाल ये है इज़्तिराब का
क्या जाने क्या हो पर्दा जो उट्ठे नक़ाब का
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बनावट हो तो ऐसी हो कि जिस से सादगी टपके
कोई आबाद मंज़िल हम जो वीराँ देख लेते हैं
जाना जाना जल्दी क्या है इन बातों को जाने दो
तड़प के रात बसर की जो इक मुहिम सर की
ख़त्म हो जाते जो हुस्न ओ इश्क़ के नाज़ ओ अदा
ग़ज़ल उस ने छेड़ी मुझे साज़ देना
मिरी नाश के सिरहाने वो खड़े ये कह रहे हैं
वो आलम है कि मुँह फेरे हुए आलम निकलता है
उर्दू-ए-मुअ'ल्ला
दर्द-ए-आग़ाज़-ए-मोहब्बत का अब अंजाम नहीं
जनाज़ा रोक कर मेरा वो इस अंदाज़ से बोले
दें भी जवाब-ए-ख़त कि न दें क्या ख़बर मुझे