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दुरुस्त है कि मिरा हाल अब ज़ुबूँ भी नहीं - सफ़दर मीर कविता - Darsaal

दुरुस्त है कि मिरा हाल अब ज़ुबूँ भी नहीं

दुरुस्त है कि मिरा हाल अब ज़ुबूँ भी नहीं

मक़ाम-सज्दा कि ये जाम सर-निगूँ भी नहीं

नहीं कि शोरिश-ए-बज़्म-ए-तरब फ़ुज़ूँ भी नहीं

दलील-ए-शोरिश-ए-जाँ इक चराग़-ए-ख़ूँ भी नहीं

हदीस-ए-शौक़ अभी मुख़्तसर है चुप रहिए

अभी बहार का क्या ग़म अभी जुनूँ भी नहीं

अभी तो ताक़-ए-हरम में जलाइए शमएँ

अभी हरीफ़-ए-सनम जज़्ब-ए-अन्दरूँ भी नहीं

अभी ये गुम्बद-ए-सर फोड़ने की कीजे फ़िक्र

कि सद्द-ए-राह अभी चर्ख़ नीलगूँ भी नहीं

अभी तो गर्द-ए-रह-ए-आस्ताँ से साज़ करें

फ़रोग़-ए-दीदा कोई पैकर-ए-फ़ुसूँ भी नहीं

है इस क़दर कि निगह बाम-ओ-दर पे फिरती है

मगर दिलों को जो तड़पाए वो सुकूँ भी नहीं

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In Hindi By Famous Poet Safdar Meer. is written by Safdar Meer. Complete Poem in Hindi by Safdar Meer. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.