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चारों ओर अब फूल ही फूल हैं क्या गिनते हो दाग़ों को - सफ़दर मीर कविता - Darsaal

चारों ओर अब फूल ही फूल हैं क्या गिनते हो दाग़ों को

चारों ओर अब फूल ही फूल हैं क्या गिनते हो दाग़ों को

हो तौफ़ीक़ तो दिल से लगाओ इन नौ-रुस्ता बाग़ों को

जलते सहरा की मौजों पर गिरते-पड़ते रह-रव हैं

चश्मा-ए-आज़ादी के जो अब तक ढूँढ रहे हैं सुरागों को

बाद-ए-हवादिस के शहपर ख़ुद उन को राह दिखाते हैं

वक़्त के धारे पर छोड़ा है हम ने ऐसे चराग़ों को

कुंज-ए-क़फ़स गो कुंज-ए-क़फ़स है लेकिन अब के बहाराँ में

हम ने महकता पाया जोश-ए-तसव्वुर-ए-गुल से दिमाग़ों को

सुब्ह-ए-रोज़-ए-आदम-ए-नौ है धूम मची है घर घर में

साथियो उट्ठो सुबूही से छलकाएँ भर के अयाग़ों को

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In Hindi By Famous Poet Safdar Meer. is written by Safdar Meer. Complete Poem in Hindi by Safdar Meer. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.