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बग़ौर देखो तो ज़ख़्मों का इक चमन सा है - सफ़दर मीर कविता - Darsaal

बग़ौर देखो तो ज़ख़्मों का इक चमन सा है

बग़ौर देखो तो ज़ख़्मों का इक चमन सा है

सुकूत तिश्ना तमन्नाओं का कफ़न सा है

कभी खिल उठते हैं यादों के भी कँवल वर्ना

बहार में भी ये दिल इक उदास बन सा है

उभर रहा है जो नग़्मा बहार के दिल से

गुदाज़-ओ-सोज़ कुछ उस में तिरे बदन सा है

चमन से दूर चमन के हर इक ख़याल से दूर

खुला हुआ मरी आँखों में इक चमन सा है

नज़र नज़र में घुलावट है बद-गुमानी की

हुजूम-ए-माह में खिलता हुआ गहन सा है

है का'बा कितने समन-पोश नाज़नीनों का

ये दिल जो कहने को यूँ चाक-ए-पैरहन सा है

मिरा जुनूँ है अदब-आश्ना अभी वर्ना

हरम के पर्दे में भी एक बरहमन सा है

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In Hindi By Famous Poet Safdar Meer. is written by Safdar Meer. Complete Poem in Hindi by Safdar Meer. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.