चार सू हसरतों की पहनाई

चार सू हसरतों की पहनाई

ज़िंदगी किस तरफ़ चली आई

आ ग़म-ए-ज़िंदगी कहाँ है तू

आरज़ू ले रही है अंगड़ाई

फिर वही तीरा-बख़्तियाँ अपनी

फिर शब-ए-ग़म है और तन्हाई

ग़ौर कीजे तो याद आएगा

थी कभी आप से शनासाई

जाइए आप कोई बात नहीं

आँख थी बे-ख़ुदी में भर आई

इबतिलाओं में क्या घिरे 'सफ़दर'

ज़िंदगी की रविश ही गहनाई

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In Hindi By Famous Poet Safdar Khursheed. is written by Safdar Khursheed. Complete Poem in Hindi by Safdar Khursheed. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.