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उस मेज़ पर सर झुकाए - सईदुद्दीन कविता - Darsaal

उस मेज़ पर सर झुकाए

एक लड़की मुझे स्केच कर रही थी

लड़की की ड्राइंग अगरचे अच्छी नहीं थी

लेकिन उसे इस क़दर मुंहमिक देख कर

मैं बहुत मुताअस्सिर हुआ

मुझे ख़्वाहिश हुई

कि मैं उस लड़की का बोसा ही ले लूँ

मगर मेरा धड़ ग़ाएब था

मेरी ड्राइंग उस लड़की से कहीं ज़ियादा बेहतर थी

और मैं उस की छातियाँ बनाना भी चाहता था

जो उस के खुले हुए गरेबान से झाँक रही थीं

लेकिन मेरा बक़िया जिस्म वहाँ नहीं था

उसे शायद जंगली जानवर भंभोड़ रहे हों

ड्राइंग में मा'मूली दस्तगाह रखने के बावजूद

लड़की ने मेरे चेहरे की उदासी को

भर पूर तरीक़े से काग़ज़ पर मुंतक़िल कर दिया था

लेकिन वो मेरे निचले धड़ को

बार बार कोशिश के बावजूद

बनाने में नाकाम रही थी

मुझे लगा वो मेरे जिस्म को

जंगली जानवरों से बचाने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है

क्या उसे मालूम है

अगर वो इस कश्मकश में कामयाब रही

और मेरा जिस्म पूरी तरह बाज़याब करा सकी

तो मेरे हाथ

सब से पहले

किस चीज़ को छू लेना चाहेंगे

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In Hindi By Famous Poet Saeeduddin. is written by Saeeduddin. Complete Poem in Hindi by Saeeduddin. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.