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लोहे का लिबास - सईदुद्दीन कविता - Darsaal

लोहे का लिबास

मैं अपने आप को

एक लोहे के लिबास में पाता हूँ

शायद कभी

ये कोई ज़िरह रही हो

लेकिन अब ये मेरी क़ब्र है

मैं अपने तहफ़्फ़ुज़ के मुआ'मले में

बहुत मोहतात रहा हूँ

और अब

एक लोहे के लिबास में

घुट कर मर रहा हूँ

ये लिबास

मुझे बहुत से हथियारों की मार से महफ़ूज़ रखता है

ये मेरे बदन पर

न तंग है

न ढीला

अलबत्ता मैं इस लिबास में

चल फिर नहीं सकता

बाहर से

इस का जाएज़ा नहीं ले सकता

न उठ कर खड़ा हो सकता हूँ

लोहे के लिबास में

आदमी बड़ा महफ़ूज़ रहता है

वो तमाम शहर को

अपने सामने जलता

और तमाम लोगों को मरता देख सकता है

लोहे के लिबास में आदमी

किसी की इबादत नहीं कर सकता

किसी का हाथ नहीं थाम सकता

लोहे के लिबास में आदमी

ज़िंदगी पर

थूक नहीं सकता

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In Hindi By Famous Poet Saeeduddin. is written by Saeeduddin. Complete Poem in Hindi by Saeeduddin. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.