दरिया कुछ नहीं
उस के जल की मिठास कुछ नहीं
उस की मछलियाँ और उस का बिफराओ कुछ नहीं
मैं जब एक गाता हुआ पत्थर उस में फेंकता हूँ
तो दरिया एक गीत बन जाता है
जो अपने उतार चढ़ाओ और बिफराओ में
ज़िंदगी से कम पुर-शोर नहीं
और ज़िंदगी का यही शोर दरिया है
यही मछली यही मछेरा
यही मीठा जल
और यही शाइ'री है